गंगा नदी के तट पर बसा लखीसराय जिले का बड़हिया अपनी लजीज मिठाई की मिठास के लिए मशहूर है। जेहन में बड़हिया का नाम आते ही रसगुल्ले की तस्वीर उभरनी शुरू हो जाती है और मुंह पानी से भर जाता है। वैसे तो रसगुल्ला के लिए कोलकाता प्रसिद्ध है, लेकिन बड़हिया का रसगुल्ला भी अपने लजीज स्वाद के मामले में सीधी टक्कर देने की काबिलियत रखता है। अगर इसे रसगुल्ले की नगरी कहकर पुकारा जाए तो कोई हिचकने जैसी बात नहीं होगी। यहां के रसगुल्ले की मांग बिहार के साथ पड़ोसी राज्यों में भी होती है।
बिहार के लखीसराय का यह छोटा कस्बा रसगुल्ले की नगरी के नाम से मशहूर है। यहां हर किस्म के रसगुल्ले बनते हैं, लेकिन इन सबों में एटम बम नाम की रसगुल्ले की खूब पॉपुलैरिटी है। इस रसगुल्ले का साइज इतना बड़ा होता है कि एक खाने के बाद दूसरे खाने की हिम्मत नहीं जुट पाती है। स्वाद इतना शानदार की मन और खाने का करे।
खासियत यह है कि आज भी यहां 130 से 200 रुपए प्रति किलो रसगुल्ला बिक रहा है। बता दें कि यहां के रसगुल्ले शुद्ध छेना, बिना मैदे और पतली चा के बनाए जाते हैं। इसके अलावा यहां अन्य किस्म की मिठाइयां बनती हैं। जैसे- काला जामुन, गुड़ की चाशनी से सराबोर रसगुल्ला, क्रीम चॉप मिठाई, रसमलाई, आदि।
रसगुल्ले बनाने वाले कारीगर अनिल ने बताया कि यहां दियारा एरिया व आसपास के इलाकों से दूध लाया जाता है। इसी से छेना निकालते हैं। छेना को भरपूर फेंटा लगाया जाता है जिस वजह से यहां के रसगुल्ले मुलायम और काफी हल्के होते हैं। बिना मैदे और पतली चासनी से इसे बनाया जाता है, जो इसे और लजीज बना देता है।
बड़हिया में बीते 28 सालों से मां शीतला मिष्ठान भंडार के मालिक अमित कुमार बताते हैं कि यहां आसानी से दूध की उपलब्धता है। डेयरी नहीं जाना जाता है किसान खुद यहां आकर दूध पहुंचा देते हैं। इससे कम कीमत में बढ़िया दूध मिल जाता है। इसके साथ ही चासनी का कम उपयोग किया जाता है।
बताते चलें कि यहां रसगुल्ले की तकरीबन 50 से ज्यादा दुकानें हैं, जहां रोजाना तकरीबन एक से दो क्विंटल रसगुल्ले बिकते हैं। इसे बनाने के लिए मजदूर और कारीगर भी लगते हैं। यहां एक दुकान में तकरीबन 20 से 25 कामगार हैं। हिसाब से देखा जाए तो तकरीबन 2 हजार से 2500 लोगों का घर रसगुल्ले के कारोबार से चल रहा है। किसानों को भी सुलभता होती है उनका दूध स्थानीय बाजार में बिक जाता है।