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बिहार में ना जाने कितने ऐसे लोग हैं जिन्होंने बिहार का नाम आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने का काम किया है। इसी कड़ी में आज की कहानी बिहार के एक ऐसे युवा उद्यमी की है जिन्होंने उबर और ओला की तर्ज पर बिहार के टैक्सी सेवा आर्य गो की शुरुआत की।

 

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बता दें कि हम आज की खास अंक में आर्य गो के मालिक दिलखुश कुमार के बारे में बात करने जा रहे हैं जिन्होंने अपने संघर्षों से आज अपनी सफलता को एक नया मुकाम दिया है। दिलखुश कुमार की पढ़ाई की बात की जाए तो उनकी तालीम सरकारी स्कूल में हुई। थर्ड क्लास से मैट्रिक पास किया और बारहवीं में सेकेंड डिवीजन से पास हुए।

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आर्थिक तंगी का ये आलम था कि एक कपड़े को पहनकर पूरा सप्ताह गुज़ार देते थे। आर्य गो कैब सर्विस के मालिक दिलखुश कुमार की जिन्होंने आर्थिक तंगी को मात देकर स्वरोज़गार किया औऱ आज अपनी कंपनी में लोगों को रोज़गार भी दे रहे हैं।

 

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बेहद ही मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं दिलखुश कुमार, कम उम्र में हो गई थी शादी

दिलखुश कुमार के पिता ड्राइवर थे, वह इतना ही कमा पाते थे कि बच्चे को दो वक्त की रोटी खिला सकें। वहीं दिलखुश कुमार की कम उम्र में शादी हो जाने की वजह से परिवारिक बोझ और ज्यादा बढ़ गया था। आर्थिक स्थिति को देखते हुए दिलखुश ने पढ़ाई छोड़ कर नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी।

 

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नौकरी की तलाश में वह जॉब फेयर गए जहां पर स्कूल में चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन भरा जा रहा था। वही जो काफी संघर्ष करने के बाद उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने पिता की तरह ड्राइवर बनने का निर्णय लिया। जिसके बाद दिलखुश में ड्राइविंग सीख कर दिल्ली में छोटी सी ड्राइविंग की नौकरी की लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और एकाएक दिलखुश कुमार ने दिल्ली में ड्राइविंग की नौकरी छोड़ कर अपने गांव लौटने का फैसला किया और यहीं से अपनी स्टार्टअप कंपनी की शुरुआत की।

गांव लौट कर दिल खुश नहीं शुरू की बिहार की देसी कैब कंपनी, आज कई लोगों को दे रहे रोजगार

बता दें कि गांव वापस लौटने के बाद फिर से दिलखुश को नौकरी की तलाश सताने लगी। इसलिए उन्होंने अनुबंध के आधार पर एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के लिए काम करना शुरू किया। काम सही ढंग से चलने लगा। आमदनी अच्छी होने पर होने 2016 में उन्होंने एक कार ख़रीदी और गांव वापस आ गए।

 

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फिर उन्होंने देखा कि गांव में कैब व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं है। कैब वाले ज्यादा चार्ज भी वसूल रहे हैं। इन सब को देखते हुए उनके दिमाग़ में आर्यगो कैब सर्विस खोलने का आईडिया आया, उन्होंने आर्यगो कंपनी खोल ली। इसका नतीजा यह हुआ कि यह देसी कंपनी चल पड़ी और आज इस स्टार्टअप की सहायता से दिलखुश बिहार के कई युवाओं को नौकरी दे रहा है। अपने अनुभवों के बारे में दिल कुछ बताते हैं कि उन्हें शुरुआत में काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।

शुरू में लोगों ने उड़ाया मजाक, लेकिन आज 8 जिलों तक पहुंच चुकी हैं आर्या गो कैब कंपनी

दिलखुश कुमार ने जब आर्यगो कपंनी खोली तो गांव के लोगों ने उनका खूब मज़ाक उड़ाया। लेकिन फिर भी उन्होंने सब को दरकिनार करते हुए अपने काम की शुरुआत की। उन्होंसे सबसे पहले अपने कैब सर्विस में प्रति घंटा और मिनट के हिसाब से चार्ज का सिस्टम लागू किया जो कि लोगों को काफ़ी पसंद आया।

अकसर गांव में कैब बुक करने पर पूरे दिन का चार्ज देना होता था लेकिन आर्यगो ने मार्केट की इस परंपरा को ही बदल दिया। इससे लोगों ने ज़रूरत के मुताबिक ही कैब की बुकिंग की जिससे कंपनी का और लोगों का पैसा और वक़्त भी बचा। अच्छी कैब सर्विस गांव में नहीं होने की वजह से ग्रामीण इलकों को आर्यगो कैब का कारोबार काफ़ी बढ़ता गया। आज आर्यगो कंपनी के पास बिहार के 8 ज़िलो में 600 के क़रीब कैब है। हज़ार की तादाद में लोग काम कर रहे हैं।

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