बिहार की यह अनूठी होली, बनते हैं बांस के बड़े-बड़े छाते, जानिए इसके पीछे की वजह

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सामान्य रूप से रंगों का पर्व होली का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है। इस साल भी होली को लेकर तैयारियां अंतिम दौर में है। इस त्यौहार को सेलिब्रेट करने को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न परंपराएं देखने को मिलती हैं। बिहार के समस्तीपुर जिले के एक गांव में अनूठी होली खेली जाती है, इसमें आस-पड़ोस के लोग हिस्सा लेने पहुंचते हैं। देश में जैसे वृंदावन, मथुरा, ब्रज की होली प्रसिद्ध है वैसे ही समस्तीपुर के धमौन क्षेत्र की छतरी होली लोकप्रिय है। इस छाता होली का अंदाज अलग होता है, इसकी तैयारी एक पखवाड़े पूर्व से ही शुरू हो जाती है।

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समस्तीपुर के पटोरी अनुमंडल इलाके के विशाल गांव धमौन में लंबे अरसे से पारंपरिक रूप से छाता होली मनाई जाती है। इस साल उत्साह दोगुना है। पर्व वाले दिन हुरिहारों की टोली बांस के बशे छतरी के साथ फाग गाते निकलती है, उस वक्त पूरा एरिया रंगों में सराबोर हो जाता है। तमाम टोलों में बांस के बड़े बड़े छाते बनते हैं और इन्हें कागजों एवं अन्य सजावटी वस्तुओं से आकर्षक तरीके से डेकोरेट किया जाता है।

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बता दें कि ग्रामीण अपने कस्बे के छातों के साथ शोभा यात्रा में शामिल होकर महादेव स्थान जाते हैं। परिवारों में खाते-पीते यह शोभा यात्रा आधी रात महादेव स्थान पहुंचती है। जाने के दौरान ये लोग फाग गाते हैं, मगर लौटते वक्त ये चैती गाते हैं। इस दौरान फाल्गुन मास समाप्त होकर चैत्र महीने की शुरूआत होती है।

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इस अनूठी होली की शुरुआत कब हुई, इसकी जानकारी तो कहीं मौजूद नहीं है, किंतु गांव के वृद्ध हरिवंश राय ने बताया कि इसकी शुरूआत साल 1930-35 में हुई है। अब यह होली इस एरिया की शान बन गई है। आसपास के इलाके के सैकड़ों लोग इस अनूठी और आकर्षक परंपरा को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। गांव के लोग बताते हैं कि पूर्व में एक ही छतरी बनाई जाती थी, मगर धीरे-धीरे इन छतरियों की संख्या में इजाफा होती गई।

ग्रामीण बुजर्ग ने कहा कि आज के युवा वर्ग भी इस परंपरा को जिंदा रखे हुए है। उनका कहना है कि इससे केल देवता खुश होते हैं और गांवों में एक वर्ष तक खुशहाली पवित्रता कायम रहता है।