काशी विश्वनाथ मंदिर के तर्ज पर बनेगा बिहार में भी कॉरिडोर जानिए

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बिहार के गया जिले में स्थित बोधगया में महाबोधि कॉरिडोर बनने जा रहा है। तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि गया जिले में स्थित बोधगया का गहरा संबंध धार्मिक और ऐतिहासिक से जुड़ा हुआ है। यहां महात्मा बुद्ध को बोधि वृक्ष के तले ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहां बिहारियों के लिए काफी श्रद्धा जुड़ा हुआ है साथ ही इसे देखने के लिए विदेश से भी लोग आते हैं।

73 एकड़ में बनेगा महाबोधि कॉरिडोर, लाल-गुलाबी-पीले पत्थरों व ग्रीनबेल्ट से सजेगा | Mahabodhi corridor to be built on 73 acres, will be decorated with red-pink-yellow stones and greenbelt ...

बिहार की राजधानी पटना से दक्षिण 101 किलोमीटर दूरी पर स्थित गया जिले से सटा हुआ एक छोटा सा शहर है। बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल बौद्ध धर्म के लिए दार्शनिक हो गया। यहां हर साल बौद्ध धर्म से संबंधित रखने वाले करोड़ों लोग दर्शन के लिए आते हैं।

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अब श्रद्धालुओं के अपने भगवान के प्रति श्रद्धा और करोड़ों लोगों का भगवान बुद्ध के प्रति रुझान को देखते हुए यहां श्रद्धालुओं और भक्तजनों के लिए महाबोधि कोरिडोर बनने जा रहा है। दोस्तों इस कॉरिडोर का निर्माण का आईडिया बनारस में स्थित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से आया है। कॉरिडोर का निर्माण भी ठीक काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह होगा।

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जानकर खुशी होगी कि महाबोधि कॉरिडोर के लिए 72.90 एकड़ जमीन की चिन्हित की गई है। इसमें 66.96 एकड़ जमीन शिक्षा विभाग की, 03.94 एकड़ जमीन भुहडबंदी अधिशेष की, 0.34 एकड़ जमीन बिहार सरकार की और 01.7 एकड़ भूमि सर्वसाधारण भूमि है। इस कॉरिडोर की सबसे खास बात यह है कि यह राजस्थान के खास किस्म के पत्थर से सजाया जाएगा जिसका कलर लाल पीले व गुलाबी होने वाला है जो कि देखने में काफी आकर्षक लगेगा। महाबोधि मंदिर के चारों ओर खासकर निरंजना नदी के तट पर सौंदर्य करण पर काम होगा।

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इस काम के लिए फिलहाल पर्यटन विभाग और तत्कालीन डायरेक्टर जनरल कमल वर्धन जी ने बोधगया यात्रा के दौरान पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन के साथ मिलकर बैठक की है। दोस्तों आपको पता हो कि यूनेस्को ने महाबोधि मंदिर के परिसर को विश्व धरोहर घोषित करते समय उसके चारों और सांस्कृतिक परदेसियों की रक्षा करने पर जोर दिया था। इसके तहत 1982 के कनिंघम के बोधगया पुरातात्विक स्थलों के नक्शे को आधार बनाया जा रहा है। इसी के आधार पर यहां खुदाई का भी प्रस्ताव रखा गया है।

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मंदिर के आसपास 59790 वर्ग मीटर क्षेत्र में खुदाई की जाएगी। अभी महाबोधि विहार मंदिर सटी गहरी जमीन के अंदर है। यहां भी खुदाई करने का सोचा गया है। केंद्र ने कहा है कि यूनेस्को को वर्ष 2002 में दिए गए विहार प्लान के को किसी भी तरह निर्माण से मुक्त रखा जाए। पर्यटन विभाग को इस जमीन की हस्तांतरण (एक के हाथ से दूसरे के हाथ में आना) का रिपोर्ट भेज दिया गया है। आपको जानकर बेहद खुशी होगी कि कॉरिडोर लैंड बैंक के लिए प्रस्तावित सभी जमीनों का की प्रिक्रिया प्रखंड स्तर पर पुरी हो गई है।

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इन इन स्थलों पर किया जायेगा काम

बुद्ध पोखर – दोस्तों महाबोधि के सबसे प्रसिद्ध जगहों में एक बुद्ध पोखर हैं। बोधि वृक्ष के दक्षिणी द्वार के बाहर एक तालाब हैं, जिसे दो ब्राह्मण भाईयों ने मिलकर खुदवाया था।

घोषालचक – दोस्तों इस जगह का भी संबंध पौराणिक है। यह भी एक तालाब है जिसका निर्माण भगवान इंद्र ने महात्मा बुद्ध के ज्ञान के प्राप्ति के बाद बनवाया था। इसे भी अब सवारने का काम किया जाएगा।

मुचलिंद सरोवर – दोस्तों यह महाबोधि के पूरब के घने जंगल में स्थित एक तालाब है जिसे भगवान इंद्र ने महात्मा बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के बाद बनाया था।

बड़ा पत्थर – दोस्तों इस पत्थर का भी काफी मजेदार इतिहास है कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने इसे महात्मा बुद्ध के स्नान के बाद कपड़ा सुखाने के लिए लाया था। अब इस पत्थर को भी सवारने का काम किया जाएगा।

उरेल टिला – यह एक विहार था जो कि मुचलिंद सरोवर के निकट है।

बुद्ध विहार – दोस्तों यह नदी के पश्चिमी तट पर स्थित भगवान बुद्ध की मूर्ति वाला बिहार है इसे और विकास किया जाएगा।