आंखों की रोशनी चली जाने के बाद भी प्रांजल पाटिल बनी देश की प्रथम नेत्रहीन IFS अधिकारी, UPSC मे प्राप्त किया 773वां रैंक

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कहा जाता है कि अगर आपके हौसलों में उड़ान हो और आपने कुछ कर गुजरने की क्षमता हो तो आपकी शारीरिक कमियां आपकी सहायता में बाधा नहीं बन सकती हैं। इसी कहावत को देश की पहली नेत्रहीन सिविल सेवा अधिकारी प्रांजल पाटिल ने साबित कर दिखाया है। बता दें कि प्रांजल पाटिल देश की पहली नेत्रहीन आईएएस अधिकारी बनकर उन्होंने कीर्तिमान बनाया है। बताया जाता है कि बचपन से ही आप अपनी आंखों की रोशनी खोने के बाद भी प्रांजल ने कभी हार नहीं मानी और अपने कठिन परिश्रम से आज सफलता के इस मुकाम को हासिल किया है।

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बचपन में हुए हादसे में चली गई थी आंखों की रोशनी, लेकिन कभी नहीं मानी हार

प्रांजल पाटिल महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली हैं। प्रांजल के साथ बचपन में एक हादसा हुआ, जिसमें उनकी एक आंख खराब हो गई और एक साल बाद ही दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। लेकिन प्रांजल ने हार नहीं मानी। उन्होने बिना आंखों से देखे पहली ही बार में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर ली।

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उनकी यूपीएससी परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 773 आई थीं। जिसके बाद प्रांजल के सपनों को पंख मिले और वह देश की पहली नेत्रहीन अफसर बिटिया बन गई। बता दे की प्रांजल जब 6 साल की थीं, जो स्कूल में किसी बच्चे ने उनकी आंख में पेंसिल मार दी, जिससे उनकी एक आंख खराब हो गई।

वह इस हादसे से उभरती उससे पहले ही उनकी दूसरी आंख में भी अंधेरा छा गया। उनके माता पिता ने प्रांजल को कमजोर नहीं पड़ने दिया। हादसे के बाद प्रांजल का दाखिला मुबंई के दादर स्थित श्रीमति कमला मेहता स्कूल में कराया गया है। यहां प्रांजल जैसे ही खास बच्चे पढ़ते हैं। उन्होंने यहां से 10वीं की पढ़ाई की। बाद में चंदाबाई कॉलेज से आर्ट्स में 12वीं किया। उस समय उनके 12वीं में 85 फीसदी अंक आए थे।

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बिना कोचिंग किये यूपीएससी में पाई सफलता

जब प्रांजल अपने स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं, तब उन्होंने प्रशासनिक सेवा के बारे में जाना और यूपीएससी की परीक्षा से जुड़ी जानकारियां जुटानी शुरू कीं। उन्होंने आईएएस बनने की तो तभी ठान ली, लेकिन किसी को इस बारे में बताया नहीं। ग्रेजुएशन के बाद प्रांजल दिल्ली आ गईं और जेएनयू से एमए किया।

इसके बाद प्रांजल ने यूपीएससी की तैयारी की ओर रुख किया। फिर उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के लिए नेत्रहीन लोगों के लिए बने एक खास सॉफ़्टवेयर का सहारा लिया। उनकी दोस्त ने भी प्रांजल का साथ दिया। वही आज प्रांजल अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता पिता के अलावा दोस्तों को देती हैं।